ग़ुरूर-ए-जवानी
ये जो ग़ुरूर-ए-जमाल-ओ-जवानी है,
कहते हैं ये शै गुलशन-ए-फ़ानी है।
ग़ुरूर-ए-जमाल-ओ-जवानी = जवानी और सुंदरता का घमंड
गुलशन-ए-फ़ानी = नश्वर
रही तलाश ताउम्र जो शान-ओ -शौक़त की,
मिली तो पाया के ये जुस्तज़ू बेमानी है।
जुस्तज़ू = कोशिश, तलाश
कभी है धूप ग़मों की, कभी ख़ुशी की बारिश,
बदलती है जो पल-पल वो जिंदगानी है।
कर के क़त्ल मेरा, पूछा जो हाल उसने,
कहा अदब से मैंने, जी, मेहरबानी है।
खा के पत्थर भी जो ख़ामोश रहा मैं,
मैं कहूँ शराफ़त, वो कहें नातवानी है।
नातवानी = कमजोरी
किसको सुनाओ हो यहाँ हाल अपना,
‘दिलीप’ यहाँ सबकी यही कहानी है।