आराइशे शहर
आराइश उनके शहर की देखिए क्या ख़ूब है,
हर किसी की आज ये मंज़िल-ए-मक्सूद है।
आराइश = सजावट
हर तरफ़ रंग-ओ-बू, रौशनी है चारसू ,
छुप गयी जो रौशनी में मज़लूम की वो भूख है।
चारसू = चारों तरफ़, मज़लूम = सताया हुआ
कर के दीवारें खड़ी ख़ुश है हाकिम-ए-शहर,
क्या पता नादान को शहर कहाँ महफ़ूज़ है।
क्या हुआ कि इस कदर सहमा हुआ सा है शहर,
क्या हुआ क्यों यहाँ हर शख़्स यूँ मजबूर है।
देखता हूँ जिस तरफ़ रुकी हुई है ज़िन्दगी
हर रात सियाह है यहाँ, हर सुबह बेनूर है।