बदलो, मगर इतना भी न बदलो,
कि तुम्हें न दें दिखाई-
दोस्त, अहबाब और
दिल की लिखाई।
बदलो, मगर इतना भी न बदलो,
कि तुम्हें न दे सुनाई
मजलूम की चीख़, घायल की कराह, ग़रीब की दुहाई।
बदलो, मगर इतना भी न बदलो,
कि बदल जाएँ परिभाषाएँ
सच, झूठ, ईमान, देशप्रेम
और इतिहास की गाथाएँ।
हाँ, बदलो अगर बदलना ही है तो,
तंग दिल, जाहिल दिमाग, गंदी जुबान
और अंधेरे में कैद ख़याल।